Wednesday, March 9, 2016

"Mumbai diaries"



"When you become a character and the city becomes your dialogue."
With love to Mumbai <3heart emoticon
आजकल नींद कम ही आती है तीन चार घंटे कभी आँख लग गयी तो लगता है भरपूर नींद है.. अँधेरा अभी पूरी तरह छठा नहीं है और सामने की खिड़की से आकाश बेहद खूबसूरत नज़र आ रहा है.. सामने से चमचमाती हैडलाइटों में वाहन जगमगाते हुए एक कतार से गुज़र रहे हैं तो लग रहा है जैसे स्वप्न हैं विविध रंगों में... सोचता हूँ अगर यूँ ना होता तो क्या होता। अगर यहाँ ना होता तो कहाँ होता। किस हाल में होता, क्या कर रहा होता। हम सारी ज़िन्दगी कितने ही रूपों में अपने अस्तित्व का एनेल्सिस कर चुकते हैं, पर फिर भी एक बाधा बनी रहती है... एक सटल सी कन्फूज़न साथ चलती है और उस अनिश्चितता से ही एक रोमांच बना रहता है.. जीने में मज़ा आता है.. दिन कितना भी साफ़ क्यों ना हो पर सुबह का कोहरा सबसे ज़्यादा आकर्षक होता है.. उसमे से गुज़र कर निकल जाना कई विस्मयों को सफलतापूर्वक पार करने सी अनुभूति देता है.. हर वो चीज़ जो धुंधली है उसमे खोज का स्कोप बना रहता है.. आप जितना ज़्यादा उस धुंध में उतरते जाते हैं सिरे खुलते रहते हैं.. मैं सोचता हूँ कि ये रैस्टलैसनैस क्यों है, धैर्य क्यों टूट जाता है, ये उत्तेजना कहाँ तक साथ रहने वाली है और इससे क्या मिलना है.. पर मुझे लगता है कि ये स्वाभाविक है, अगर सांस चलती है तो दिल का धड़कना भी बनता है.. जीते जी जड़ हो जाना उस बाँझ पेड़ के सामान है कि जिसमे कोई फल नहीं लगता, उस बंजर बाग़ की तरह के जिसमे कोई फूल नहीं महकता।मुझे लगता है कि हर आदमी में एक पैशन होता है और ज़िन्दगी में एक बार ही सही पर उस पैशन को औबसैशन की शक्ल देनी चाहिए। मैंने कला को चुना या यूँ कहूँ की मुझे कला ने चुना तो इसमें क्या फ़र्क़ है.. पिछले कुछ समय से यहाँ घर से हज़ारों किलोमीटर दूर रह कर महसूस किया कि जीना असल में क्या है.. यथार्थ के पटल पर संघर्ष के क्या माने हैं.. कला किस हद तक कंस्ट्रक्टिव है.. यहाँ आये दिन न जाने कितने ही लोगों से मिलना होता है, कितने अनुभव ज़िन्दगी के पन्नों में दर्ज़ हो रहे हैं.. चमत्कार कोई सुपर नेचुरल चीज़ नहीं वो यहीं हैं हमारे आसपास, रोज़मर्रा की गतिविधियों में.. मैं आये दिन चमत्कृत होता हूँ.. और अभी इनसे भरा नहीं हूँ, हमें सरलता से जीना चाहिए, ताकि हम जीवन द्वारा चमत्कृत हो सकें। मैंने ये भी महसूस किया ये शहर वाकई कमाल है, इसकी हवा में ही एक आज़ादी है, जब से यहाँ हूँ एक अजीब सी थ्रिल महसूस करता हूँ, परेशानियां घेरे रहती हैं फिर भी कमज़ोर महसूस नहीं होता। जीवन जीने का एक मात्र तरीका यही है कि स्वाद लिए जाएँ। कुकिंग पसंद आने लगी है अब तो रेसिपी रेफेर करना अच्छा नहीं लगता, इसके रेफरेन्स से ज़्यादा सहज है कि खुद ही ट्राई किया जाए, जैसा भी पके, परोसा जाए क्योंकि जो हमारा अनुभव है, जो हम महसूस करते हैं सिर्फ वही हमारा सत्य है और वह जो हम रेफ्रेंसेज़ में पढ़ते हैं या दूसरों से सुना होता है वह किसी दूसरे का.. जब हम उससे जुड़ते हैं तो हम दूसरे के सत्य को अपना मान रहे होते हैं... वह मिथ्या है... ठीक वैसा कि क्लिफ जम्पिंग करने से पहले खुद को आखिर तक बचाए रखना व साथियों को कूदते हुए देखते कूदने के बाद की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाना।
तस्वीर : Raj Jain

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