Friday, December 26, 2014

"चार्ली"





कॉमेडी एक सबसे कठिन विधा है। सभी भावों में सबसे गहरा भाव है। यह दुखों को उनके संकुचित दायरे से बाहर निकाल कर सार्वभौमिक बना देने की कला है या कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अगर दुखों का विस्तृत अन्वेषण किया जाए तो वह हाँस्य है। कॉमेडी करते हुए किसी भी कलाकार को सबसे अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है। कॉमेडी एफोर्टलेस होनी चाहिए। प्रयासों से रुदन फूट सकता है, गंभीर भाव दर्शाये जा सकते हैं परन्तु हँसाया नहीं जा सकता। दरअसल हाँस्य परिस्थिति पर आधारित होता है और एक प्रभावी कॉमेडियन उसे दी गयी उन परस्थितियों का लाभ उठता है। अच्छी कॉमेडी टाइमिंग, हाज़िरजवाबी (इशारों व मुद्रा के लिहाज़ से भी) और क्रियान्वयन के द्वारा दर्शायी जा सकती है। इसमें जितना कंटेंट का कॉम्प्रिहेंशन महत्वपूर्ण है उतना ही ज़रूरी है उसका आर्टिक्युलेशन जो कि ज़ाहिर है दर्शकों की प्रतिक्रिया पर निर्भर करता है उस लिहाज़ से कलाकार, कहानी व दर्शकों के बीच तारतम्य बनाये रखते हुए यह एक गूढ़ बात को सरलतम अंदाज़ से कह देने का साधन है।
हाँस्य का असर बहुत गहरा होता है। यह ऐसा बाण है जो भेदते हुए घाव भले ही न दे जाए परन्तु इसकी टीस लम्बे अरसे तक ज़हन में तैरती रहती है। एक हाँस्यकार बेहद संजीदा, भावुक, गंभीर व मेधावी होता है, उसका काम ड्रामा के सभी तत्वों के एकत्रित व अतिरंजित इस्तेमाल (रोमांस, सेडनेस, हैप्पीनेस, इमोशनल सीक्वेंस ) के साथ उस स्थिति को विनोदपूर्ण दिखा देना है इस प्रकार एक सफल हाँस्यकार अपनी संजीदगी के साथ किसी भी प्रकार के किरदार में जान डाल सकता है...!
चार्ली चैप्लिन- अभिनय का एक पूरा संस्थान। उनको फिल्मों में देख कर आश्चर्य होता है। सही मायने में गिफ्टेड कलाकार। उन कुछ महानुभावों में से एक जिन्हें नियति द्वारा एनलाइटेंड भेजा गया होगा। लम्बी लम्बी रील वाली फ़िल्में व उस पर भावों को बचाते हुए निरंतर मूक अभिनय। स्थिति की मांग पर अभूतपूर्व पकड़, रिपीटेशन ऑफ़ रेगुलर एक्सप्रेशंस होने के बावजूद भी दर्शकों को ज़रा न खिजाते हुए उनके मनमस्तिष्क पर एक के बाद एक प्रभावी असर छोड़ती अभिव्यक्तियां।
अभिनय में एक टर्म है मैथड एक्टिंग जो कि महान स्टॅन्स्लीविस्की की ड्रामा व स्टेज पर की गयी गहन रिसर्च की देन है। इसके अनुसार अभिनयकार को अभिनय करते हुए कुछ बातों का ख़ास ख्याल रखना होता है- अव्वल तो वह अभिनय न लगे, दूसरा वह अभिनय न हो, तीसरा कोई ऐतिहासिक किरदार करते हुए वह किरदार लगना इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना उस किरदार को दर्शाना। दरअसल अभिनय एक सम्मोहन है या मैजिक ट्रिक्स जैसा होता है... एक सफल अभिनयकार वही है जो अपने दर्शकों को सम्मोहित कर अपने संवादों के प्रभाव में डाल सके व जो शो या फिल्म ख़त्म होने के बाद उस किरदार की छवि को अपने साथ ले कर लौट सकें।
चार्ली की किसी भी फिल्म को देखते हुए सबसे ख़ास बात जो आकर्षित करती है वह यही है कि हर बार वही मोनोटनस आउट फिट(काला कोट, हैट व सफ़ेद शर्ट) पहने हुए भी वे कभी चार्ली नहीं लगे बल्कि हर बार वे प्रवृत किरदार नज़र आये... चाहे पेंटर हों, बार्बर, बैरां या धोभी उन्होंने अपने सरल अभिनय से उन सभी किरदारों को जिवंत कर दिया।
अतिसामान्य लुक्स, सहज चाल, सरल भावमुद्रा वाला एक गूढ़ व्यक्तित्व जो न केवल अपनी असीम प्रतिभा से लोगों के दिलों में एक विशिष्ट स्थान बना पाया है बल्कि हर एक हाँस्य के साथ अपनी भीतरी पीड़ा को भी अभिव्यक्त करने में सफल रहा है।
कहा जाता है एक कलाकार अपने अंतिम समय में बिलकुल खाली हो जाना चाहिए परन्तु यह आदर्श स्थिति में संभव नहीं है इसलिए अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से जो इसके सबसे नज़दीक पहुँच पाया है मेरा ख्याल है वह चार्ली चैप्लिन है..

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