Saturday, December 13, 2014

बुढ़ापे के लिए

रातों को मैंने आकाश के तारे गिने
दिनों में सूरज से आँख मिलानी चाही
पहाड़ों की सबसे ऊँची छोटी पर चढ़ कर खाई
की तरफ पैर लटका के बैठ गया
नदी के वेग को हाथ से रोकने की चेष्टा की
व हवा को विपरीत चल कर टक्कर दी
लड़कपन में मैंने हर वह काम किया
जिस पर रोक लगाई गयी,
बुढ़ापे के लिए मेरी एक मात्र इच्छा है
मेरी लाठी "शाल" की लकड़ी की बनी हो..!

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