Friday, May 9, 2014

"प्रेमिका से मुलाकात वाले दिन"




मैंने अपनी धड़कने ठीक से सुनी
वे निरंतर चल रहीं थी।
गालों पे हाथ फेरा तो
खुरदुरापन पहले से कुछ अधिक महसूस हुआ।
आँखें रुआंसी तो थी पर
उनमे एक अलग किस्म की चिप-चिपी मीठी नमी थी।
चेहरा निस्तेज था पर अब पट्ट बुझा नहीं था।
मूछें खुद-ब-खुद दोनों तरफ की बराबर नज़र आने लगी थीं,
उलटे दाढ़ के दातं का कीड़ा जिसने
अरसे से सिर में दम कर रखा था आज अचानक गायब था।
मुस्कान मोनालीसा चित्र सरीखी,
गाल गुलाबी,
चेहरा वसंत सा पीला,
कन्धे उठे हुए, हाथ कुछ लम्बे
व पेट १०० ग्राम फूला हुआ।
जेबें अब भी खाली पर बाहर को लटकी नहीं,
सलीके से अंदर थीं,
हाथों में बची चंद रेजगारियां
झूम झूम कर खनक रहीं थी।
रुमाल गंदला था
पर त्रिकोण बनाये ऊपर जेब से
आधा निकला जच रहा था।
शर्ट का रंग लाल था व हाथ में गुलाब था,
कलाई घड़ी भाग रही थी उसे कहीं पहुंचना था।

1 comment:

  1. ऐसे लग रहा, जैसे मेरे साथ जो घटा था वो उतार दिया शब्दो मे :)

    ReplyDelete