Friday, May 30, 2014

मैंने लिखते हुए जाना कि
लिखना एक अत्यधिक भ्रमित स्थिति है।
मैंने जाना कि
जब हम लिख सकने की स्थिति में होते हैं
तो न पूर्णतः खुश होते हैं, न पूर्णतः दुखी।
न प्रेमी, न पागल, न उन्मत्त, न सुबोध,
न ही पूर्णतः आशावादी या निराशावादी।
कुछ भी महसूस कर उसे लिख देना
उस महसूस किये हुए से कभी न गुज़र पाने की स्थिति है।
लिख देना सुरक्षित सहवास है !
क्षणिक आनंद के लिए
सावधानी से किया गया गर्भनिरोधक उपाय।
लिख देने भर से जी लेना नहीं होता,
जिस प्रकार दुखी हो जाने भर की अभिव्यक्ति से
खुशियों के कपाट नहीं खुलते।

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