Tuesday, June 11, 2013

अँधेरा- एक रहस्य..

अँधेरा क्या है??
ये फकत हर्फ़ है कोई या इसका कोई अस्तित्व भी है,
अगर है, तो फिर इस अस्तित्व का मूल तत्व क्या है?

अमावस की घुप काली रात में रौशनी की
तलाश में एक ख़ामोशी
जो देर तक गूंजती रहती है कानो में,
क्या अँधेरा वही है??

शीशे में कोई प्रतिबिम्ब न हो, न साया ही नज़र आये
न तलाश हो कोई, न किसी ख्वाब के तकमील
होने की चाह ही बचे, चलती साँसों में
जब ज़िन्दगी मर जाए,
क्या अँधेरा वही है??

किसी जिस्म के देर से पड़े रहने से जर्द होने तक
के सफ़र में जहाँ कोई सांस न हो,
कोई आवाज़ न हो, न हलचल ही दिखाई पड़े,
क्या अँधेरा वही है??

शब्दों की तलाश में जूझती हुई वो शिकस्तां कलमे,
और जख्मो से बहने वाली सियाई में रंगे
पन्ने का गल कर कमज़ोर होना,
जब घायल कलम हो और पन्ने को मौत आये,
क्या अँधेरा वही हैं??

तेज़ हवा के थपेड़ों में बुझते
हुए ख्वाब को हथेली पे लिए ओक से ढक कर बचाती रहे,
हवा बुझाती रहे उसे, तू फिर से जलाती रहे,
तू जलाने सँभालने के इस खेल में जो एक दिन
खुद ही राख हो जाये,
क्या अँधेरा वही है??

अँधेरा कुछ तो है शायद, महज एक हर्फ़ नहीं,
जैसे काली सीलेट पर चाक के चंद निशाओं के पड़ने से
कई मतलब जिन्दा होते हैं, और अँधेरों को
परत-दर-परत कुरेदने पर तह में कैद
कई उजाले दिखाई पड़ते हैं,

शायद उजालों की ना-कामियाबी...
हाँ अँधेरा वही है, अँधेरा वही है!! 

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