Wednesday, January 25, 2012

एक राह चलती रही



एक राह चलती रही,
न थमा मैं, न राह लगी कभी थकी हुई...

सपने आँखों में व मन में मेरे आस थी,
चलना था दूर मगर मंजिल की मुझे तलाश थी..
न रोके मुझे अँधेरा, न वो काली रात थी, 
आशाओं के दिये हर तरफ, चमकती उम्मीदें साथ थीं..
फलक तक गूँज पहुँची मेरी, हर फिजा आज मेरे साथ थी, 
हवाओं ने थामा हाथ मेरा, दिशाओं से मेरी बात हुई,
एक राह चलती रही,
न थमा मैं, न राह लगी कभी थकी हुई... 

कल्पना की डोर में बंधी लहराती नई पतंग थी, 
तूफानों के शोर न थे, न वह मायूसी संग थी..
सूर्य खुश चमक रहा था, 
हवाओं में महकती उत्साह की सुगंध थी..
खिल गए रंग इन्द्रधनुष के,
नए जोश के साथ मन में एक नई उमंग थी..
सुलझ गए सब सवाल, पहेलियाँ,
छोटी सी आशा से फिर एक नई शुरुवात हुई..
एक राह चलती रही,
न थमा मैं, न राह लगी कभी थकी हुई... 
   

1 comment:

  1. rah chalti nahi, chalta tu hai,
    khushiyo ko jeevan sang malta tu hai,
    aashaaon ke deepak me, tel teri parishram ka,
    sab kuch mil jae par koi na ,mel teri parishram ka ... ...

    ReplyDelete